कुंडलिया छंद
होती है दिलदार की ,एक यही पहचान।
तन से होता वृद्ध पर,दिल से रहे जवान।
दिल से रहे जवान,करे बस बात रसीली।
लेता सबको मोह,रखे वह नज़र नशीली।
सब पर डोरे डाल,जगाए किस्मत सोती।
ऐसी प्रतिभा किंतु,नहीं है सब में होती।।1
जबसे माथे पर लगा ,बदनामी का दाग।
साथ छोड़ तबसे गए ,अपने सारे भाग।
अपने सारे भाग ,जताते हैं मजबूरी।
देते निर्णय थोप ,बात बस सुनें अधूरी।
क्या है सत्य असत्य,बताएँ कैसे सबसे।
प्राणी बना निकृष्ट,हुई बदनामी जबसे।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय