कुंडलियां
मित्रों तीन कुंडलियां आपके सम्मुख हैं। प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है।
1.
कविताई के रंग सब उस अबूझ का नूर।
मन में जिसने रख दिया अक्षय भाव कपूर।
अक्षय भाव कपूर सदा ये खुशबू देता।
बहता रहता मन में एक सुवासित सोता।
कह ” कुमार” कविराय न सबके हिस्से आई।
बिरले ही कर सकते इस जग में कविताई।
2.
उमर गयी बाकी रहा कर्म गुथा इक हार।
मोती जिसमे कम दिखें कंकर की भरमार।
कंकर की भरमार हिर्दय को छील रहे है।
पछतावे के मगर चैन को लील रहे हैं।
कह ” कुमार” दुविधा में जिनकी गुजर गयी है।
आंसू के संग बाकी उनकी उमर गयी है।
3.
रामराज में भी कहाँ सब थे सुखी प्रसन्न।
वैदेही विरहिन रही हिर्दय राम का भग्न।
हिर्दय राम का भग्न नहीं दुःख दूर कर सके।
समय शत्रु बलवान न उसको चूर कर सके।
कह ” कुमार” होते यहां बहुधा खंडित काज।
कलयुग का कलिकाल हो या हो राम का राज।