कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शब्द- अकेला
कितने रिश्तेदार हैं, स्वार्थ सधे तो साथ।
एक अकेला ही चले, सभी छुड़ाते हाथ।।
सभी छुड़ाते हाथ ,दर्द ये सबको सहना।
ईश्वर को रख ध्यान,नाम तुम उसका जपना।।
सीमा कहे पुकार,प्राण हैं बस में जिनके।
हरते वो सब पीर, घाव जो लगते कितने।
राह दिखाते राम हैं, बनते सबकी आस।
बंधन झूठे हैं सभी,रहते ईश्वर पास।।
रहते ईश्वर पास, अकेला चलते रहना ।
पूर्ण होते काम, शांत मन अपना रखना।
सीमा रख विश्वास,कष्ट प्रभु आप मिटाते ।
सब जब छोड़े साथ, वही हैं राह दिखाते।।
एक अकेला मन यहाँ, अपना साथी आप।
सभी झमेलों को छोड़,एक सहारा जाप।।
एक सहारा जाप,मुक्ति का कारण बनता।
करे मोक्ष आसान, पार भव सागर करता।।
सीमा मिथ्या जान,जगत है झूठा मेला।
ईश्वर पकड़े हाथ, समझ नहिँ एक अकेला।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’