कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शब्द-झूला
झूला पेड़ो पर कहाँ, बचपन गुम है आज।
फोन खिलौना बन रहा,वही करे सब काज।।
वही करे सब काज, खेल है पीछे छूटा।
अल्हड़ पन को भूल, बाल मन थोड़ा टूटा।।
सीमा कहती आज,समय क्यों वो है भूला।
हरा भरा हो देश,फिर से झूले झूला।
सीमा शर्मा ‘अंशु’