कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शब्द- रक्षक
रक्षक मेरी मातु है, खूब लुटाती प्यार।
ईश सरीखा रूप है, देती सब कुछ वार।।
देती सब कुछ वार, कष्ट है कितने सहती।
सच्चा रिश्ता एक, यही है दुनिया कहती।।
सीमा माँ का प्रेम, सुखों में बनता हर्षक।
दुख सुख में दे साथ,बनी है मेरी रक्षक ।।
रक्षक सैनिक देश के, सेवा करें दिन रैन।
उनके होते ही रहे, जीवन में सुख चैन।।
जीवन में सुख चैन, शक्ति से इनकी करते।
दुश्मन जाते भाग, निडर हो डट कर लड़ते।।
सीमा पर तैनात, हिन्द के बनते सर्जक।
धन्यवाद नित मान,जान के वो हैं रक्षक।।
सीमा शर्मा ‘अंशु’