कुंडलियां
कुंडलियां
सृजन शव्द- पावन
गंगा पावन बह रही, निर्मल शीतल धार।
पापों को है काटती, जग की तारन हार।।
जग की तारन हार, मोक्ष का साधन बनती।
देती है वरदान, ज्योति सी धारा चलती।।
सीमा कहती देख, हृदय हो जाता चंगा।
रखना इसको साफ, करो मत मैली गंगा ।।
काशी पावन स्थान है, पूजन अर्चन काम।
साधु संत की आस है, विश्वनाथ का धाम ।
विश्व नाथ का धाम,यहाँ है गंगा बहती।
जप लो शिव का नाम, लहर हर जाती कहती।।
सीमा कहती राज,करें कण कण कैलाशी।
आकर कर ले वास, भाग्य से मिलती काशी ।।
मनसा पावन तीर्थ है,रखना इसको साफ।
अंतस कपटी हो गया, होगा कैसे माफ।।
होगा कैसे माफ,प्रभु भी नाखुश होते।
फलते वैसे बीज, कर्म के जैसे बोते।
सीमा कहती ईश ,भक्ति का भरना कलसा।
काम बुरे तुम छोड़, प्रेम को रखना मनसा ।।
सीमा शर्मा “अंशु”