कुंडलियां
बुलबुल के हर नीड़ पर , करें बाज नित गश्त ।
तन के भूखे लालची , काम कूप में मस्त ।।
काम कूप में मस्त , नोचते नारी काया ।
शोषण हिंसा द्वेष , कपट रग रग में छाया ।
कैसा आया समय , बची ना लज्जा बिल्कुल ।
कौओं का षड्यंत्र , भोगती हरदिन बुलबुल ।।
सतीश पाण्डेय