कुंडलियां
माली ही जब बाग का , करे चमन वीरान ।
किसे दोष दें फिर भला , सोचे हिन्दुस्तान।।
सोचे हिन्दुस्तान , समय की है बलिहारी ।
नहीं बचा विश्वास , स्वार्थ की महिमा सारी ।
उद्धारक का स्वांग , रात करतूतें काली ।
नोचें कलियाँ नित्य , आज उपवन के माली ।।
सतीश पाण्डेय