कुंडलियाँ
एक
प्रजातंत्र की लूट है, लूट सके तो लूट.
अंत समय पछताओगे, पार्टी जाएगी टूट..
पार्टी जाएगी टूट, फूट जब दल में होगा,
रह जाएगा हाथ, साथ जो तुमने भोगा..
कह आलोक अब देर न करके हाथ बँटाओ,
शेष देश के नक्से को भी फाड़ के खाओ.
दो
कवि जी पहुँचे मंच पर, लेकर पोथी आप,
पंद्रह मिनट पन्ना उलटे, घंटा भर आलाप..
घंटा भर आलाप, रसों में डूबे ऐसे.
खिसके सब स्रोता गण, जैसे तैसे..
कह आलोक सम्मेलन में हुआ सन्नाटा,
कविताई का बाँट खूब ढाका भर बाँटा..