कुंडलियाँ
बीते दिन की बात है, दिखे गाँव में बैल
नई हवा ने भर दिया, सबके मन में मैल )
सबके मन में मैल, नहीं घानी भी दिखती
न्यारे तेरे खेल,खाद भी शुद्ध न बिकती
मारे-मारे फिरें , रहे जल दूषित पीते
शुद्ध न खाया तेल, दिवस अनगिन हैं बीते
मनोरमा जैन पाखी