दूहौ
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
पधारे दिव्य रघुनंदन, चले आओ चले आओ।
बरखा रानी तू कयामत है ...
सच्ची मेहनत कभी भी, बेकार नहीं जाती है
क्यों शमां मुझको लगे मधुमास ही तो है।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
बदल कर टोपियां अपनी, कहीं भी पहुंच जाते हैं।
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
स्त्रियां, स्त्रियों को डस लेती हैं