कि इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
कि इतनी भीड़ है कि मैं बहुत अकेली हूं ,
मन की बात भी मन को ही कहती हूं, क्यूंकि खुदा ने कहा खुद ही खुद की सहेली हूं।
जो चाहा कभी किसी को कहना मनका, जेहन में सोचा फिर आंखे मूँदे, न पाया किसी का भी चित्र चलचित्र एसा जिसे कहु कि क्या बीत रही हैं मुझसे और हूं क्या आखिर जिंदगी में मैं तलाश रही।
यू हुआ है आज मेरा दिल जो हल्का क्युकी मेरी बात आज मेरी कलम दिल से ज़ज्बात को उतार रही 💕