किस बात की नाराज़गी
अपनी ज़मीं अपना वतन अपनी कसक ईमान की ।
किस बात की इतनी क़वायद, गर्मजोशी शान की ।।
किस बात की तल्ख़ी बढ़ी किस बात की घबराहटें।
किस बात की मौका परस्ती क़ामयाब किसान की।।
सबकी ज़मीं सबका वतन सबकी अलग पहचान है।
सबका धरम सबका करम सबकी निराली शान है ।।
किस बात की नाराज़गी किस बात की बेकार ज़िद ।
किस बात की जद्दोजहद किस बात का व्यवधान है।।
(जगदीश शर्मा)