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28 Nov 2022 · 1 min read

किस किस के दुख दूर करूँ

किस किस के दुख दूर करूँ
**********************

किस किस के दुख दूर करूँ
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती,
पग – पग पर है मारो मारी।

कोई किसी का मीत नहीं,
होती सभी की जीत नहीं,
लगें हुए जड़ें काटने,
आगे कुंआ पीछे खाई।

मन मे कोई प्रीत नहीं,
साफ़ – सुथरी है नीत नहीं,
पेट – कपट से लिप्त सभी,
दिलो – दिमाग होशियारी।

बेरंग हो गए रिश्ते-नाते,
मुँह फेरते हैं आते-जाते,
रंग उड़ गए हैं मुख मोटे,
खाली है प्रेम – पिचकारी।

छलकत है माया नगरी,
जैसे हो अध-जल गगरी,
खाली हो रही है मोह में,
सरेआम ये दुनियादारी।

मनसीरत है बिना बिछौना,
नाजुक सा खेल – खिलौना,
पल – भर में है टूट जाता,
चीनी का बर्तन भारी।

किस किस के दुख दूर करूँ,
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती।
पग – पग पर है मारो मारी।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
Tag: गीत
77 Views
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