किस किस के दुख दूर करूँ
किस किस के दुख दूर करूँ
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किस किस के दुख दूर करूँ
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती,
पग – पग पर है मारो मारी।
कोई किसी का मीत नहीं,
होती सभी की जीत नहीं,
लगें हुए जड़ें काटने,
आगे कुंआ पीछे खाई।
मन मे कोई प्रीत नहीं,
साफ़ – सुथरी है नीत नहीं,
पेट – कपट से लिप्त सभी,
दिलो – दिमाग होशियारी।
बेरंग हो गए रिश्ते-नाते,
मुँह फेरते हैं आते-जाते,
रंग उड़ गए हैं मुख मोटे,
खाली है प्रेम – पिचकारी।
छलकत है माया नगरी,
जैसे हो अध-जल गगरी,
खाली हो रही है मोह में,
सरेआम ये दुनियादारी।
मनसीरत है बिना बिछौना,
नाजुक सा खेल – खिलौना,
पल – भर में है टूट जाता,
चीनी का बर्तन भारी।
किस किस के दुख दूर करूँ,
यह दुनिया दुखिया सारी।
पेट आग कहीं न बुझती।
पग – पग पर है मारो मारी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)