किस्सा
चलो आज फिर थोड़ा लिखते हैं,
काग़ज़ भी तो शब्दो को तरसते है।
फिर मन की कोई बात ले आते है,
कोई नया किस्सा बतलाते है।।
कुछ सूनी कुछ अनसुनी,
कहानी सुनाते हैं।
आप के चेहरे पर,
थोड़ी मुस्कान ले आते हैं।
अरे कुछ कहने तो दो,
आप तो यूँही मुस्कुराने लगे।
मेरी बातो को पहले ही,
हवा मे उड़ाने लगे।।
ऐसे तो ना हो पायेगा,
बातो का जोश शुरू मे ही मर जायेगा।
जैसे गोलगप्पा,
मूँह मे आने के पहले ही फूट जायेगा।।
फिर कहोगे,
दूसरा खिलाओ।
ओह्हो अब ये क्या दे दिया,
इसमें तो जैसे नमक ही भर दिया।।
गोलगप्पा ऐसा हो जो मसालेदार हो,
पर उसमे मिर्च की भरमार ना हो।
हाँ दिखने मे अब सही लग रहा,
स्वाद के आगे जी नही भर रहा।।
अब खिलादो खट्टे मीठे पानी मे,
ताकि स्पीड से खा सके इस खुमारी मे।
बस भी करो अब जगह नही है पेट मे,
जल्दी से सुखी पूरी दो ताकि हो जाऊँ पर्फक्ट् मे।।
आपकी मुस्कान ने जिस जोश को मारा था,
यही था वो बचा हुआ हिस्सा।
अब यही रुकना है मुझे,
ताकि पुरा हो आज का किस्सा।।
डॉ महेश कुमावत 21 जून 2024