किसी ने पूजा मुझे अपना मुकद्दर समझा।
किसी ने पूजा मुझे अपना मुकद्दर समझा।
मुझे परवाह नहीं तुमने जो पत्थर समझा।
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अलहदा नजरें हैं सबका अलग नजरिया है।
किसी ने बूंद को ही पूरा समंदर समझा।
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करीब जाने पर हट जाते हैं कई परदे।
हवा का झोंका ही था जिसको बवंडर समझा।
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और कोई नहीं जो इस तरह हैरान करे।
वक्त से उम्दा किसी को न कलंदर समझा।
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किस तरह बचते दुश्मनों के तीरों खंजर से।
खुला मैदान था जिस जगह को बंकर समझा।
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मैंने भी ठान लिया बनके हीरा चमकूंगा।
आप सब ने जो मुझे राह का पत्थर समझा।
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दिखाई उन सबों ने खुद ही कमतरी अपनी।
जिनकी नजरों ने “नजर” हमको है कमतर समझा।
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कुमारकलहंस।