किसी के प्रति बहुल प्रेम भी
किसी के प्रति बहुल प्रेम भी
किसी की अवहेलना का कारण बनता है,
खोकर बुद्धि विवेक डूब जाता है इंसान
किसी ख़ास की परवाह में इतना ज़्यादा
कि औरों की फ़िक्र कहाॅं करता है?
अनावश्यक प्रेम कहीं मत लुटाएं…
जितनी ज़रूरत है उतना ही लुटाएं !
जिससे दोस्तों, सगे-संबंधियों एवं रिश्तेदारों
की कदर में कोई कमी ना पड़ जाए,
और प्रेम का संतुलन हर दिशा में बना रहे…
…. अजित कर्ण ✍️