किसान
किसान
धरती पुत्र किसान
सिर पर बांध कर पगड़ी
बहुत ही गर्व महसूस करता है
इस देश का हर किसान
खेतों में करता है काम
भोर के तारे के साथ उठता है
कंंधे पर हल रखकर निकल पड़ता है
दिन निकले से मेहनत करता है
तब जाकर अन्न कणों से घर भरता है
एक एक दाने में पसीने की नमी है
तुम तो सर्वज्ञ हो देख रहे हो भगवन
वैसे तो प्रकृति हर बार इसे छलती हैं
इस बार इसके चेहरे की रंगत ही निराली है
खेत में दानों से भर गई हर बाली है
चारों तरफ छाई सुंदर हरियाली है
फसल उत्पादन तकनीक से
फसल भी जौरदार लहलहाई है
लगता है लड़की का ब्याह हो जायेगा
कर्ज भी शायद उतर जायेगा
छोटा ही सही पक्का घर हो जायेगा
नये दिन के सपने मन में संजोए
गहरी काली रात बिताता है
नई भोर के आगमन पर
उठता है और गुनगुना कर मुस्कुराता है
रंभाती गायों को डाल कर चारा
खेतों में जाने को तैयार हो जाता है
धरती का पुत्र है अन्नदाता है
इस देश का हर किसान