किसान
बैलों को हांकता, हल चलाता
अध नंगे बदन तपती गर्मी में
धरती का सीना चीर रहा,
एक आस लगाए
कुछ सपने संजोए
दिन रात पसीना बहा रहा।
ट्रैक्टर के पीछे सुहागे पर बैठा
धूल से सना
बादलों की ओर
टकटकी लगाकर देखता,
बरसात की आस में
कुछ सपने संजोए
दिन रात पसीना बहा रहा।
रात के अन्धेरे में
सांप-बिच्छुओं के घेरे में
सर्द रात को, ठण्डे पानी में
नाके बदलता, ठण्ड से कांपता
किसान
फसलों की आस में
कुछ सपने संजोए
दिन रात पसीना बहा रहा।