किसान!
किसान !
कल अगर इतने ही फायदेमंद थे,
सरकारी क़ायदे तेरी ख़ातिर,
तो क्यों रात को बिन सोए,तुम कतार में लग जाते थे,
खाद-बीज नही ना मिले पर,प्रशासन के डंडे तुम खाते थे,
फ़सल रद्द होने पर,आत्महत्या कर जाते थे,
फिर रो-रो कर घरवाले तुम्हारे,तुम्हारी लाचारी बताते थे,
फिर सरकारी महकमे,
कुछ दिन किसान-किसान का गाना गाते थे।
आज जब तुम बिन डंडे खाए,
खाद-बीज पाते हो,
किसान स्वाभिमान के नाम पर,हर साल धन पाते हो,
सरकार की सरकारी सहायता,
कृषि ऋण,MSP,कृषि बीमा पाते हो,
सस्ता ट्रैक्टर लोन पाकर,
वो ट्रैक्टर तुम लाल किले पर चढ़ा,
देश का सम्मान तार-तार कर जाते हों,
क्या देश के दिए सम्मान का,
यही तुम ऋण चुकाते हो!
अरे मेरे अन्नदाता हम तुम्हारे साथ थे,
साथ है और साथ ही रहेंगे,
पर कब तक तुम बहकावे में आकर,
ऐसे ही सियासत के शिकार बने रहोगे।
दीपक ‘पटेल’