किसान का असली दर्द
भारतीय किसान गरीब है। उनकी गरीबी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। किसान को दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पाता। उन्हें मोटे कपड़े का एक टुकड़ा नसीब नही हो पाता है। वह अपने बच्चों को शिक्षा भी नहीं दे पाते। वह अपने बेटे और बेटियों का ठीक पोशाक तक खरीद कर नहीं दे पाते। वह अपनी पत्नी को गहने पहऩऩे का सुख नहीं दे पाते। किसान की पत्नी कपड़े नही दिला सकता ।।
पड़े..……
पर आज में एक किसान के मन की बात बता रहा हूँ अचली में किसान के साथ क्या होता है वो आज में वो बता रहा हूँ
कोई गलती हो क्षमा करना
कहते हैं..
इन्सान सपना देखता है
तो वो ज़रूर पूरा होता है.
मगर ,
किसान के सपने कभी पूरे नहीं होते
(इंसान का सपना पूरा जरूर होता है
पर किसान का नहीं।)
बड़े अरमान और कड़ी मेहनत से फसल तैयार करता है,किसान और जब तैयार हुई फसल को बेचने मंडी जाता है किसान।
बड़ा खुश होते हुए जाता है…
अपनों बच्चों से कहता है कि
आज में आपके लिये नये कपड़े लाऊंगा फल और मिठाई भी लेकर आऊंगा।
पत्नी से कहता है…
तुम्हारी साड़ी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है आज एक साड़ी नई लेता आऊंगा।।
पत्नी:–”अरे नही रहने दीजिए..!”
“ये तो अभी भी ठीक है..!”
“आप तो अपने लिये
जूते ही लेते आना कितने पुराने हो गये हैं और फट भी तो गये हैं..!”
जब..
किसान अपना धान लेकर मंडी पहुँचता है। तो
ये उसकी मजबूरी है..
वो अपने माल की कीमत खुद नहीं लगा पाता।
व्यापारी
उसके माल की कीमत
अपने हिसाब से तय करते हैं…
(पर एक छोटी सी माचिस की डिब्बी आती उस पर भी मूल्य लिखा हुआ होता हैं पर किसान के जो धान की बोरिया होती है उस पर नही ऐसा क्यों )
एक,
साबुन की टिकिया पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.।
एक,
माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.।
लेकिन किसान
अपने माल की कीमत खु़द तह नहीं कर पाता .ऐसा क्यों…….??
खैर…
माल बिक जाता है,
लेकिन कीमत
उसकी सोच अनुरूप नहीं मिल पाती.।
माल तौलाई के बाद
जब पेमेन्ट मिलता है..
…तो
वो सोचता है..
इसमें से दवाई वाले को देना भी है,और खाद बीज वाले को भी देना है, मज़दूर को देना है ,
अरे हाँ,
बिजली का बिल
भी तो भरना करना है.
…
सारा हिसाब
लगाने के बाद कुछ बचता ही नहीं.।।
??
वो उदास होकर
अपने घर लौट आता है।।
बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं…
“पिताजी..! पिताजी..!” कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं:-
“हमारे नये कपडे़ नहीं ला़ये..?”
पिता:–”वो क्या है बेटा..,
कि बाजार में अच्छे कपडे़ मिले ही नहीं,
दुकानदार कह रहा था,
इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे़ आयेंगे तब ले लेंगे..!”
पत्नी समझ जाती है, फसल
कम भाव में बिकी है,
वो बच्चों को समझा कर बाहर भेज देती है.।
पति:–”अरे हाँ..!”
“तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!”
पत्नी:–”कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!”
पति:– “अरे वो तो मैं भूल ही गया..!”
पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है
लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है .।
और अपनी नम आँखों को साड़ी के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है.।
फिर अगले दिन..
सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद ,
एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई अपने खेत पर फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है.।
….
ये कहानी…
हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है।।
…..
हम ये नहीं कहते
कि हर बार फसल के
सही दाम नहीं मिलते,
लेकिन…
जब भी कभी दाम बढ़ें, मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं.।।
कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती मुस्कराती हुई कहती हैं…
सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं हमारी रसोई का बजट ही बिगड़ गया.।।
………
कभी अपने बास्केट को कोने में रख कर किसी खेत में जा कर किसान की हालत तो देखा है क्या नही देखा है तो आज ही देखिए.।
वो शीतलहर में आधी रात को खेत मे फसलों में डालता है तब देखिए क्या होता उनका पूरा शरीर ठिठुर जाता है
वो किस तरह
फसल को पानी देता है.।।
20 लीटर दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है !!
10 किलो खाद की
तगाड़ी उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है.!!
अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है.!!
चिलचिलाती शीतलहर में
इस ठंड से लड़ाई करता हुआ फसलों को पानी देहता है!
ज़हरीले जन्तुओं
का डर होते भी
खेतों में नंगे पैर घूमता है.!!
……
जिस दिन
ये वास्तविकता
आप अपनी आँखों से
देख लेंगे, उस दिन आपके
किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध
सब सस्ते लगने लगेंगे.!!
तभी तो आप भी एक मज़दूर और किसान का दर्द समझ सकेंगे।।
धन्यवाद,,,
”मैं भी किसान का बेटा हुँ”
“*जय जवान जय किसान*”
एक कहावत हैं – “उत्तम करे कृषि, मध्यम करे व्यापार और सबसे छोटे करे नौकरी” ऐसा इसलिए कहा गया है क्योकि कृषि करने वाले लोग प्रकृति के सबसे करीब होते हैं और जो प्रकृति के करीब हो वह तो ईश्वर के करीब होता हैं.
इसमें कोई गलती हो तो क्षमा करना पर यह जो लिखा है यह बिल्कुल सच है
किसान का दर्द कोई नही समझ सकता सिर्फ किसान ही समझ सकता है
—शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
(कवि,लेखक) तहसील-बागोड़ा पंचायत समिति-भीनमाल जिला-जालोर