किरदार
क्यों भूल जाता है इंसान
पात्र है वो, नाटक उसका नहीं
जो लिखा है किरदार उसका
बस निभाना है उसे वही
निभाइए अपने किरदार को
प्रेम से जीवंत कर दीजिए
मिले जो भी दीन-ओ-दुखी
थोड़ी सी मदद कर दीजिए
कुछ नहीं जायेगा तुम्हारा
कभी मुस्कुरा दोगे अगर
दुआ मिलेगी तुम्हें, किसी का
जीवन संवार दोगे अगर
कुछ लेकर आए नहीं धरा पर
जायेगा भी कुछ साथ नहीं
जानते हो तेरी ये मोह माया
एक दिन रह जायेगी यहीं
न कर गुमान किसी बात का
पांव हमेशा जमीं पर ही रख
दिल को जो बात अखरती है तेरे
अपने दोस्तों के सामने रख
बांट ले कुछ दर्द दोस्तों के
मिलकर कभी खुशियां मना
भटक गए है जो राह यहां
उनको तू सही रास्ता दिखा
कुछ बड़ा नहीं करना है तुझे
सहारा बनकर किसी का हाथ थाम ले
संवार कर जीवन किसी का
मिलता है सुकून, इतना तो तू भी जान ले।