किन्तु सफर आसान रहेगा
जीवन एक सफर है जिसमें
तरह तरह के पथ आएंगे।
जो पथिकों को लक्ष्य भुला दें
कुछ ऐसे मन्मथ आएंगे।।
कहीं मोह आड़े आएगा
कुछ आलस की अड़चन होगी।
कहीं परिश्रम थक जाएगा
कहीं नियति से अनबन होगी।
सत्य झूँठ के दोराहे पर
दुविधा होगी पंथ चयन की।
क्रम से साथ रहेंगे सुख दुख
जब होगी मन की बेमन की।
कभी नेह ने आलिंगन कर
सुख दुख सारे बांटे होंगे।
ह्रदय हृदय के मध्य गर्त भी
मुस्कानों ने पाटे होंगे।
कहीं ईर्ष्या ,जलन ,कुढ़न के,
छल के सैर सपाटे होंगे।
कहीं सफर की चहल पहल में
गूंज रहे सन्नाटे होंगे।
विनयी गाँधी के गालों पर
अंग्रेजों के चांटे होंगे।
भेदभाव के कंकड़ होंगे
जातिवाद के कांटे होंगे।
छुआछूत की बीमारी से
ग्रस्त कहीं पर पथ आएंगे।
जो विचरेंगे बिना विचारे
पाँव वही लथपथ आएंगे।।
पहले सर से बोझ उतारे
सही डगर चुनकर पग धारे।
सहयात्री का हाँथ थाम ले
फिर उसका भी मार्ग संवारे।
गठरी हल्की ही रखेगा
जिसे सफर का भान रहेगा।
साथ सफर करने बालों की
सुख सुविधा का ध्यान रहेगा।
मन में जो सामान भरा है
वह भी थोड़ा कम कर लेगा।
शत्रु नेत्र में अश्रु देखकर
आंखे अपनी नम कर लेगा।
मानवता का कल्पवृक्ष हो
तो जग देवमही हो जाए।
मन को जीतो फिर जो सोचो
वैसा और वही हो जाए।
दया क्षमा करूणा सनेह से
हृदय अगर धनवान रहेगा।
सफर बड़ा अथवा छोटा हो
किन्तु सफर आसान रहेगा।
परहित भाव भरे ह्रदयों के
दर्शन को तीरथ आएंगे।
भ्रमित पार्थ में गीता भरने
नारायण चढ़ रथ आएंगे।।
संजय नारायण