किताबों के शहर में
अद्भुत,अप्रतिम अति मनोरम दृश्य ,उज्ज्वलित थे
किताबों के शहर में ज्ञान विज्ञान के ,दीप प्रज्वलित थे
चहुंदिश दीपशिखा की भांति ,अक्षर अक्षर रोशन थे
ज्ञान ही ज्ञान सर्वत्र,पावनी गंगा सदृश बहते थे
कर पुस्तक धारिणी सरस्वती, विराजित थीं
कहीं गीता रामायण की ऋचाएं प्रस्फुटित थीं
कहीं शोध करते विज्ञान की ऊंचाई शोभित थीं
कहीं पाक कला की विभिन्न ,सुरभि सुवासित थी
आलोकित हो रही थीं ,साहित्य की रश्मियां
सम्मानित हो रही थीं,साहित्यिक कृतियां
ज्ञान ही ज्ञान समाहित थे,किताबों के शहर में
गौरवान्वित हो रही थी ये, रचनाकारों की दुनियां
ज्ञान के सागर में, गहरे गोते लगा रहे विद्वान
अक्षर अक्षर मोती माणिक समेट रहे बुद्धिमान
ज्ञान ही ज्ञान पाकर यहां,बन जाते ज्ञानी महान
इसी शहर में बनते हैं डॉक्टर,जैसे हों एक भगवान
स्वरचित(मौलिक)