*** कितने खुशख़त **
कितने
खुशख़त
लिखे
मैंने तुझको
चिट्ठी
लौटती
डाक से
डाकिया
एक भी
नहीं लाया
शायद
मेरा
पत्र लिखना
तुम्हे पसन्द
नहीं आया
या फिर
दिल की बात
तुमने दिल में
आज तलक है
दबाये रखी
क्योंकि
कनखियों से
आज भी तुम
मुझे
बड़े प्रेम से
निहारा करती हो
क्या यह
प्रेम नहीं
जिस्म की
कारा में पला
ये प्रेम क्या हमें
एक कोमल तन्तु से
बांधे हुए
आज भी
जीवित नहीं है
जब मुझे चोट लगती है
तो आह अनायास
तुम्हारे दिल से
निकलती है
तुम अपने
अहम के आगे
मानो या ना मानो
हर-कारा कैद नहीं
हुआ करती
और
हरकारा हर चिट्ठी को
बांचा नही करता
आज डाक के
प्रतिरूप बदल गए हैं
डाकिया डाक
देने भले नही आता
ईमेल, जीमेल , मैसेंजर
सीधे विचार
आदान-प्रदान का बने
माध्यम इसीलिए
शायद किसी संवदिये की
आवश्यकता नहीं
जो हूबहू
आप के विचारों या
संवाद को किसी तक
पहुचा सके
क्योंकि
आज तो
सिसकिया भी
शब्द अभिव्यक्त
कर देते है
और दिल को
भावों से भर देते हैं ।
कभी कहते थे
डाकिया डाक लाया
ख़ुशी का पैगाम लाया
कोई दर्द ना लाया
डाकिया डाक लाया ।
?मधुप बैरागी