कितना सहज है ….
कितना सहज है एक पुरुष के लिए ,
एक पुष्प और नारी को तोड़कर बिखेर देना ।
कोई प्रतिरोध या टकराव नहीं
तोड़कर बिखेरने में –
दोनों अपने माली के उपवन से बंधे
बेबस, लचर, खामोश !
कितना सहज है एक पुरुष के लिए,
मसलकर फेंक देना ।
कोई अफसोस या ठहराव नहीं
मसलकर फेंकने में –
दोनों प्रेम के प्रतीक
हृदय को रिझाने वाले ;
कितना सहज है एक पुरुष के लिए ,
बाहों में समेट लेना….।
(मोहिनी तिवारी)