कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
कितना मुश्किल है केवल जीना ही ..
आँखें अश्रुपूरित
ख़ुद को समझाना
खूब अधिक समझाना
फिर कुछ नहीं समझ आना
फिर केवल एक विकल्प
सिसकियों के साथ रो लेना चुपचाप
निरंतर इसी क्रम का चलना
कब तक चलेगा उपर्युक्त पुनरारुक्ति
यह भी कुछ पता नहीं
आपका भी कमोबेश यही हाल होगा
यह सोचकर पीड़ा का कई गुना हो जाना
कितने मज़बूर है हम लोग
क्या कर सकते है, क्या नहीं कर सकते
कुछ नहीं कर सकते , क्या कुछ कर सकते है?
नैतिकता व प्रेम के दुश्जाल , द्वन्द में पड़े है
कब तक रहेंगे यह भी पता नहीं ..
क्या कभी निकल भी पाएँगे पता नहीं
शायद इस जीवन में नहीं ही ..