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19 Apr 2024 · 1 min read

कितना कुछ सहती है

कितना कुछ सहती है
फिर भी चुप रहती है,,
अपनी हीं छाती पर
अपने हीं बच्चों का
पाँव-बोझ सहती है
जननि होकर हीं
तो जाना है
मैंने
धरा की पीड़ा,
पृथ्वी का दुःख।

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