किंकर्तव्यविमुढ़
किंकर्तव्यविमूढ़
सवाल बहुत है मन में
जवाब कहाँ से लाऊं,
नींद नहीं है आंखों में
ख्वाब कहाँ से लाऊं,
अशांति बहुत है जीवन में
शांति कहाँ से लाऊं ?
दर्द बहुत है दिल में
दवा कहाँ से लाऊं,
अपने कई हैं साथ में
पर खास कहाँ से लाऊं,
छल से भरी इस दुनिया में
विश्वास कहाँ से लाऊं ?
कांटों भरी इन राहों में
आराम कहाँ से लाऊं,
समझ घिरी है जालों में
ज्ञान कहाँ से लाऊं,
समय निकले जब मंथन में
फिर वक्त कहाँ से लाऊं ?
ऐ जिंदगी,
तुझे समझना है मुश्किल,
उलझन को जितना सुलझाऊं,
उतना ही खुद को उलझा पाऊँ,
फिर लगता ……
‘किंकर्तव्यविमूढ़-किंकर्तव्यविमूढ़’ ?
–पूनम झा ‘प्रथमा’
जयपुर, राजस्थान
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