काहे भरमाये – डी के निवातिया
काहे भरमाये
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काहे भरमाये, बन्दे काहे भरमाये
नवयुग का ये मेला है
बस कुछ पल का खेला है
आनी जानी दुनिया के
रंग मंच पे नहीं तू अकेला है
मन मर्जी से सब चलते जब,
फिर तू ही, काहे घबराये, बन्दे काहे भरमाये !!
कहने को सब साथ साथ है
नहीं किसी के कोई हाथ है
दुनियादारी में फँसने का
बहाना आज आम बात है
कुछ भी करके, कुछ भी कह ले
कौन भला बंदिश लगाये,
फिर तू ही, काहे घबराये, बन्दे काहे भरमाये !!
कौन है राजा, कौन है प्रजा
अपने सर पर खुद का कर्जा
भूखो की हम तब सोचेंगे
पहले पेट जो, अपना भर जा
साम, दाम, दंड, भेद, लगाकर
अपना वर्चस्व सब जमाये !
फिर तू ही, काहे घबराये, बन्दे काहे भरमाये !!
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डी के निवातिया