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29 Oct 2024 · 1 min read

काश…

काश…
ये मुमकिन हो पाता
काग़ज़ की कश्ती की तरह
तेरी यादों को
अपनी ख़ामोश तन्हाइ के
दरिया में बहा पाता
दूर तलक देखता रहता
तेरी यादों की कश्ती को बहते
शायद
मेरी दर्द को कुछ सुकून आता

हिमांशु Kulshrestha

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