काश
काश मैं अंत देख पाता
संभाल पाऊंगा तेरे जज्बातों को,
या बिखर जायेंगे दोनों समय की चोट से।
काश तुझे ये बता पाता।
काश मेरी रूह सहमी ना होती
अपना पाऊंगा तेरी मोहब्बत को,
या पल ये दूंधला जायेंगे बीते लम्हों में।
काश तुझे ये दिखा पाता।
काश तू इतनी जिद्दी ना होती
उलझा दूंगा तेरे इन ख्वाबों को,
या डूब जाऊंगा तेरी अपेक्षाओं में।
काश तुझे ये समझा पाता।
काश मैं अंत देख पाता
सजा दूंगा खुशियों से हथेलियों को,
या छुरा कर हाथ खो जाऊंगा भीड़ में।
काश तुझे ये बता पाता।
सिद्धांत शर्मा