काश समझ लेते ।
भावना में बहकर बहुत ही बैचेन हुई ।
ना दु:ख दूर हुआ ना सुख नसीब हुआ।
और परेशानी जीवन के करीब हुआ।
अतीत को वर्तमान में ढो रही हूं।
बस जिंदगी -उम्र गुज़र रही है।
वो भी भविष्य को सोचकर
अपना वर्तमान खो रहे है।
काश समझ लेते
तो इतना उलझे ना होते व्यक्ति ।_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार, भागलपुर
दिनांक-30-3-022 मौलिक स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं ।