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7 Jul 2022 · 1 min read

काश मैं भी कविता लिख पाता

काश मैं भी कविता लिख पाता,
मन भाव इसमें दरशाता,
काश मैं भी कविता लिख पाता।

निश्छल कलम हमारी चलती,
चाटुकारिता से यह जलती,
देश हित में निशि दिन पलती,
गद्दारों के दिल को खलती,
इसमें मानवता दिख पाता,
काश……………………..

आडम्बर पर करती वार,
जल से पतली होती धार,
कर देती भव नैया पार,
जिसमें छिपता जीवन सार,
जिससे दम्भ द्वेष मिट जाता,
काश……………………….

दीपक की बाती बन जाती,
अंधियारे को मार भगाती,
बंद नयन को राह दिखाती,
प्यासे को जल धार पिलाती,
जिसका शब्द नहीं बिक पाता,
काश………………………

मातृत्व को होती प्यारी,
भ्रातृ भाव से होती भारी,
अविरल स्वच्छ होती जलधारी,
भारती चरण को होती तारी,
जिसके आगे दुःख न टिक पाता,
काश………………………

जो जातिवाद न करती हो,
अरि कुटिल पंख कतरती हो,
स्वच्छ अम्बर करती धरती हो,
जो दर्दें दिल को हरती हो,
जिसमें समाज सत्य दिख पाता,
काश……………………….

————————————
अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.

Language: Hindi
356 Views
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