काश मैं एक बेटी का पिता होता
मेरी डायरी मेरा अनुभव
मैं अक्सर ही अपने छात्रावास के समीप स्थित अल्फ्रेड पार्क में दौड़ने जाता हूं दौड़ने के बाद वहीं बैठ छोटे-छोटे बच्चों को खेलते देखता हूं जिससे मेरी थकान दूर हो जाती है….
आज भी मैं प्रतिदिन की तरह दौड़ने के बाद चिल्ड्रन पार्क में बैठ कर बच्चों का खेल देख रहा था तभी मेरी नजर पास बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति पर पड़ी उसके जिस्म पर कई जगह चोट के निशान थे वह गुमसुम बैठा हुआ बच्चों को खेलते हुए देख रहा था उसके चेहरे पर अजीब सी मायूसी थी मुझसे रहा न गया मैंने यूं ही पूछ लिया अंकल जी इतने उदास क्यों हो और यह चोट कैसे लगी उसने मेरी तरफ देखा और बिना कुछ कहे दोबारा उन बच्चों को देखने लगा मुझे बहुत अजीब लगा….खैर मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बच्चों का खेल देखने लगा तभी उन्होंने कहा मेरी उदासी का कारण जानकर क्या करोगे मैंने कहा कुछ नहीं बस यूं ही पूछ लिया वे मुस्कुरा दिए और बोले……आगे की बातें उनके शब्दों में……
मैं पेशे से एक दर्जी हूं साल 1990 में मेरी शादी पास ही स्थिति गांव में हो गई मेरी पत्नी का नाम निर्मला था वह बहुत ही खूबसूरत महिला थी जब भी मैं दुकान से आता वह मेरी बहूत सेवा करती थी सन् 1992 में मैं एक लड़की का पिता बना निर्मला बहुत खुश थी पर मैं और मेरी मां बहुत उदास थे मां और मुझे बेटा जो चाहिए था उसके बाद तो मेरी मां रोज ही निर्मला को खरी-खोटी सुनाती और ताने भी देती मैं इन सब में मां का साथ देता और निर्मला को बुरा भला कह देता पर निर्मला बिना कुछ बोले सब सुनती एक दिन मेरी बेटी बीमार हो गई हम उसे पास के अस्पताल में ले गए पर बुखार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था निर्मला ने कहा इसे किसी बड़े अस्पताल में दिखाते हैं पर मां ने साफ साफ मना कर दिया माँ ने कहा यही ठीक हो जाएगी ज्यादा पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं है और इलाज के अभाव में मेरी बेटी चल बसी निर्मला पर तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा वह फूट फूट कर रोई घर पर कई दिनों तक रोना धोना पड़ा रहा पर धीरे धीरे वह सामान्य हो गई पर अब वह बुझी-बुझी सी रहती थी… कुछ दिनों बाद निर्मला पुनः गर्भवती हुई माँ ने जाँच कराने को कहा मैं निर्मला को बिना बताए ही बहाने से उसे अस्पताल ले गया और जाँच करवा दी जाँच के बाद पता चला कि फिर बेटी ही है मां ने निर्मला को गर्भपात कराने को कहा पर निर्मला मानने को तैयार नहीं थी बात बढ़ गई और मां और निर्मला का झगड़ा हो गया माँँ ने ना जाने उसे क्या क्या कहा और मुझे उसे समझाने को कहा मैंने समझाने की बहुत कोशिश की पर निर्मला नहीं मानी बात बात में मेरा और निर्मला का झगड़ा हो गया मैंने भी निर्मला को बहुत बुरा भला कहा और उसकी पिटाई भी कर दी गुस्से में आकर वह अपने मायके चली गई और कई महीनों तक नहीं लौटी। मां ने मेरी दूसरी शादी करने का फैसला किया मैंने मां को बहुत समझाया कि यह गलत है पर वह नहीं मानी और मेरी शादी करवा दी …. निर्मला को जब यह बात पता चला तो उसने मुझे तलाक दे दिया।
खैर मेरी शादी हो चुकी थी और अगले ही वर्ष एक बेटे का पिता बना उसका नाम आशुतोष रखा गया मेरी मां बहुत खुश थी वो रोज आशुतोष को अपने हाथो से खिलाती, तेल से मालिस करती हमने उसे बहुत लाड प्यार से पाला माँ मेरी पत्नी और मैं सभी उसे बहुत प्यार करते थे…. धीरे-धीरे समय बीतता गया आशुतोष बड़ा होने लगा और समय के साथ मां भी चल बसी। लाड प्यार से पले आशुतोष का स्वभाव काफी गुस्सैल और ज़िद्दी था कई बार वह अपनी मां और मुझ पर चिल्ला पड़ता देर रात घर आता पढ़ाई लिखाई पर कम ही ध्यान देता हमने सोचा धीरे-धीरे सुधर जाएगा पर वह गलत संगत में पड़ गया था वह अब नशा भी करने लगा था कल रात वह शराब पीकर घर लौटा मैंने उसे डांटा तो उसने मेरे साथ भी मारपीट की और मेरा यह हाल कर दिया….
इतना कहते-कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने कहा काश मैं एक बेटी का पिता होता……
Rohit Raj Mishra
Student of Allahabad University