काश दिल भी जगमगाये होते
बहुत चहल पहल है बाजारों में हफ्ते भर से पहले । आखिर दीवाली आने वाली है चाहे कोई सी दुकान हो खरीददारों की भीड़ उमड़ी है दीप अपनी पूरी कला के साथ चमक रहे है क्योंकि वे लोगों के घर जाकर जलेगें लेकिन मन की संकरी गलियों में अधियारा ही रहेगा क्योंकि मन को दीपक की तरह तेल देकर प्रेम की बाती नहीं लगाई गई ।
बन्दवार से घर सजे है चारों ओर बल्बों की लड़ियाँ जुगनू सी चमक रही है पूरी चरम सीमा पर है तैयारी ।अगर तैयारी नहीं है तो मनों के मैलों को निकालने की ।
राम की विजय की प्रतीक दीवाली हर साल मनाते है लेकिन दिलों पर विजय अभी तक नही प्राप्त नहीं कर पाये । हम अपने ही घर में लड़ रहे अपनों का ही गला काट रहे । सीता -राम का आदर्श पालन कर रहे होते तो तलाकों की बाढ़ न आई होती
अपने ही लोगों के बीच घर कुश्ती के अखाड़े बने हुए । भाई – भाई के बीच बँटवारा यहीं दिखाता है कि राम भरत , लक्ष्मण के बीच प्रेम का जो स्रोत बहा करता था शायद सूख चुका है । शायद मन्थरा जैसी दासी हर जगह अपनी महतीय भूमिका निभा रही । और कलह फैला रही है ।
केवल दीप जला लेने मात्र से या पटाखे छुटा खुशी जाहिर करने से कुछ नहीं होने वाला। आवश्यकता है दिल में जो कपटी रावन बैठा है उसको जब तक मार नही गिरायेंगे तब तक घर को सजा लेने से कुछ नही होने वाला क्योंकि लक्ष्मी का वास वहीँ होता है जहाँ दिलों में सकून की बारिशें होती है और एक दूसरे के लिए नेह की वृष्टि होती है ।
आज रात्रि को करोड़ो रूपये के पटाखे छूटेंगे यदि इस धन का प्योग गरीबों के प्रयोजनार्थ किया जाये तो कितना अच्छा हो लेकिन ऐसा लगता है कि अन्धदोड़ में हर व्यक्ति दोड़ने के लिए तैयार है किसी को किसी सुध नही है अतः आवश्यकता है कि इस व्यवस्था को बदलने की।