काश अभी बच्चा होता
काश अभी बच्चा होता
मेरे खिलौने साथ रहते
मैं घर का शहंशाह होता ।
मेरा चिलाना मेरी मनमानी नही,
मेरी आवश्यकता होती
रो रो कर बुरा हाल कर लेना,
यह मेरी कमजोरी नही मेरी प्रकृति होती ;
रात भर जगना और जगाना होता…
नानी दादी का मनोरंजन करताकरता
उनके चश्में को गिराता,
दादा नाना देख देख के
होते खुश,
ऐसा मिलेगा नही कहीं सुख !
मेरे मुख से निकला आवाज
किसी का संबोधन होता …
मेरी गर्जन से थर्राते लोग
करते पहले मेरा काम
दादी पूजा पाठ छोड़
दौड़ती आती मेरे पास
गोद में उठाकर मेरा पूजा होता …
मम्मी की मनमानी न चलती
मेरी हरकतों पर आहें भरती
कहती बाबू करो न हमको
इतना परेशान,
घर पर आए है
नए मेहमान,
यह देख देख कर खुश होता
काश अभी बच्चा होता…..