काशी महिमा ( सवैया)
काशी महिमा
सवैया छंद
मात्रा पतन सहित
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किसके कब अंग लगी कर संग,
सही मुखड़ा कुँ छिपावत काशी।
सिमटी सिकुड़ी झिझकी दब के ,
दिल की हर बात दबावत काशी।
बिगड़ी छवि औरँग के रँग से,
मन ही मन रंज मनावत काशी।
शिवजी सिर गंग बहाय रहे,
शिवजी कुँ फुआरा बतावत काशी ।
2
चिन्ह बने गजराज कहीं शुभ,
सातियाँ हैं इतना बस काफी।
ताकत नादिया शंकर को कहिं ,
भी न दिखें कहँ ले गये पापी ।
तोड़ मरोड़ शिवालय मस्जिद
सेट करी दुष्कर्म कलापी ।
है असली शिव मंदर अंदर,
ऊपर है यह ज्ञान की बापी।
3
शंकर के तिरशूल बसी सब
काल समान बनी अघनाशी।
सात पुरी सबमें अतिश्रेष्ठ
दिलावत मोक्ष धरा अविनाशी।
है वरषा ॠतु सी सुख दायिनि,
है यवनों प्रति आक जवासी ।
भारत का सिर मौर चुने अरु,
मांगत न्याय पुकारत काशी ।
4
बेढब चोंच गुनी चँदशेखर,
भारत इन्दुके याद की काशी
टंडन श्याम जीसुंदर और,
निराला कवि उन्माद की काशी।
बोल कहानी सजी प्रेमचंद से,
साँड़ चकाचक स्वाद की काशी।
छंद भरी अनिला श्रीकृष्ण,
व जय शंकर प्रसाद कीकाशी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
4/11/22