काव्य
काव्य पर दोहे
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अजर अमर यह काव्य है,शब्दों का संसार।
शुभकर पावन लेख से,होता जगत सुधार।।
काव्य पठन कर जो बने,ज्ञानी संत महंत।
पाता है सम्मान वह,नित जीवन पर्यंत।।
काव्य महा जब-जब बना , तब जागा अध्यात्म।
जग का किया सुधार नित,तृप्त किया तन आत्म।।
पावन धारा काव्य यह,दे मन में रस घोल।
सार तत्व में है लिखा,अनुपम प्रेमिल बोल।।
कोहिनूर इस काव्य में,भरा जनम का मर्म।
मानवता जागृत करे , पावन लेखन कर्म।।
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स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे,”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)