काव्यशक्ति
काव्यशक्ति क्या है ? यद्दीपी भिन्न भिन्न साहित्यकारों के इस पर भिन्न भिन्न विचार हो सकते हैं पर एक आम आदमी की दृष्टि से देखा जाये तो काव्य वह है जो एक नवजात के कानो में मन्त्र स्वरूप फूँका जाता है। या वह जो एक माँ लोरी के रूप में अपने बच्चों को सुनाती है या वह जो कभी प्रार्थना रूप में, कभी गीत के रूप में बच्चों को अध्ययन अवस्था में श्रवण करने को मिलता है या वह जो लोक गीत के रूप में हर प्रदेश की समृद संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहर का गुणगान करता है या वह जो इस आधुनिक युग में आधुनिकता के नाम पर चलचित्रों, दूरदर्शन, टेबलेट, स्मार्टफोन के माध्यमों से हमारे सामने परोसा जाता है। कहने का तात्पर्य यह है के काव्य की रसानुभूति हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक रहती है। काव्यात्मक अनुभूति प्रत्येक मनुष्य में होती है। यह एक ईश्वरीय देन है। श्रवण और श्रव्य के एक ऐसी व्यवस्था जो मन को उल्लास और ख़ुशी प्रदान करती है और करती रहेगी। पुरुष हो या स्त्री , हर किसी का काव्यमय होना उसके स्वभाव में निहित है जो कविता, गीत, छन्द, भजन आदि के रूप में मुखरित होता है और हमारे मनोरंजन, ज्ञानवर्धन का साधन तो बनता ही है हमारी त्रासदियों से, कुंठाओं से, तनावों से भी हमको मुक्त कराता है। काव्य अगर केवल भावनात्मक हो या केवल वैचारिक तो पाठक शायद उतना आकर्षित न हो जितना की उस प्रस्तुति में जंहाँ दोनों का समावेश हो। कोरी भावनात्मकता या कोरी वैचारिकता काव्य शक्ति को क्षीण ही करती है।
मनुष्य स्वभाव वश भावनात्मक है और वैचारिक भी। कभी कभी उसको ऐसी परिस्तिथियों का सामना करना पड़ता है कि वह अपने आप को असहाय महसूस करने लगता है। तनावग्रस्त मनस्तिथि में काव्य अगर उसके तनाव को दूर करने की क्षमता रखता है तो काव्य की यह एक उपलब्धि ही कही जाएगी। तनाव वह नहीं जो एक साधारण व्यक्ति घर के अंदर बाहर झेलता है अपितु वह तनाव जो भारत की सीमा पर शहीद सिपाही हेमराज के सर कलम करने पर होता है। तनाव वह जो आठ माह की बच्ची से अस्सी वर्ष की वृद्धा की निर्भया जैसे नृशंस बलात्कार के उपरांत उत्पन होता है या तनाव वह जो आम आदमी की बेचारगी और दुर्दशा पर उभरता है। तनाव वह जब कोई मनुष्य खुद को ढूंढने निकलता है। तनाव वह जब नारी को अपनी शक्ति का बोध नहीं होता। तनाव वह जब समाज रूढ़िवादी तरीके अपनाता है।
तनाव आधुनिक जीवन का पूरक बन चुका और काव्यप्रेरणा, काव्यशक्ति, काव्यश्रवणता और काव्यश्रव्यता उस तनाव से मुक्ति दिलाने वाली विषहर औषधि। आखिर क्यों न हो ? दिलोदिमाग के तहखानों में सिमटी हुई भावनाएं जब एक विचार लिए लिखित रूप में दैनिकियों में उतर आती हैं और फिर छोटी छोटी काव्य गोष्ठिओं में, कवि सम्मेलनों में, परिचर्चाओं के माध्यम से लोगों तक, पाठकों तक पहुँच जाती हैं तो अनायास ही उस व्यक्ति या स्त्री के लिए एक ऐसा मुकाम पैदा हो जाता है जिसमे धीरे धीरे उनकी पहचान एक लेखक के, कवि के, एक साहित्यकार के रुप में होने लगती होती है। गोमुख के झरने के रूप में उत्पन्न, काव्य की अनुभूति आहिस्ता आहिस्ता भावनाओं और विचारों की नदी बन कर हिंदी काव्य संसार और साहित्य के विशाल सागर में समावेशित होने को निकल पड़ती है। तब यही अनुभूतियाँ यथार्थ और सत्य को परिभाषित करती काव्यधारा के रूप में स्फुटित हो कर निकलती है और एक निर्झरणी के समान पाठकों को काव्यरस में सराबोर करने के क्षमता रखती है, , उन्हें जागरूक करती हैं , उन्हें सोचने पर मजबूर करती है, उन्हें कुछ करने पर मज़बूर भी कर सकती हैं । यही काव्यशक्ति है। यही काव्य की महानता है।
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