काला कौवा
कुण्डलिया
~~
दर्शन दुर्लभ हो रहे, सूनी है मुंडेर।
कौवे क्यों अब हर जगह, दिखते देर सवेर।
दिखते देर सवेर, घटी है संख्या इनकी।
संकट में अस्तित्व, विषय चिन्ता का सबकी।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, प्रदूषित भू का तन-मन।
लुप्त हुए हैं जीव, हो रहे दुर्लभ दर्शन।
~~
काला कौवा देखिए, खूब मचाता शोर।
श्राद्ध पक्ष में हो रहा, पूजन है हर ओर।
पूजन है हर ओर, भोग कौवे को लगता।
होते पितर प्रसन्न, भाव श्रद्धा का जगता।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, बहुत है किस्मत वाला।
पर संकट में आज, बहुत है कौवा काला।
~~
संकट ग्रस्त प्रजाति है, पक्षीकुल में काग।
लेकिन मानव सो रहा, नहीं रहा है जाग।
नहीं रहा है जाग, प्रदूषित हुई धरा है।
खान पान में खूब, रसायन जहर भरा है।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, मुसीबत बहुत है विकट।
जन जीवन पर आज, खूब मँडराया संकट।
~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य