काला कौआ
कौआ होकर पछताता हूँ
मन की कब कुछ कर पाता हूँ
कोयल भी है काली काली
उसको सब कहते मतवाली
मैं जल -फुककर रह जाता हूँ
कौआ होकर पछताता हूँ
काला हूँ ,ऊपर से काना
है सुर में कब मेरा गाना
काँव काँव ही चिल्लाता हूँ
कौआ होकर पछताता हूँ
काला काला क्यों हूँ इतना
दुख होता है सोचूँ जितना
रोकर मन मैं बहलाता हूँ
कौआ होकर पछताता हूँ
बोली मेरी कर्कश लगती
तो इसमें क्या मेरी गलती
बात न ये समझा पाता हूँ
कौआ होकर पछताता हूँ
30-07-2023
डॉ अर्चना गुप्ता