काम से राम के ओर।
काम से राम के ओर।
-आचार्य रामानंद मंडल।
पहिले स्कूल दस बजे सुबह से चार बजे अपराह्न तक चले।हम एगो मिडिल स्कूल में शिक्षक रही।हम आ एगो और शिक्षक वीरेंद्र बाबू समय से पहिले ही साढ़े नौ बजे तक स्कूल में पहुंच जाइ। कुछ शिक्षक दस बजे तक और बाकी साढ़े दस बजे तक आ जाय। कुल सात शिक्षक रही। विद्यार्थी सभ साढ़े दस बजे तक पहुंचे। सफाई प्रार्थना के बाद एगारह बजे से क्लास लगे।
अइ बीच में हम आ वीरेंद्र बाबू आपस में बात करी।अहिना एक दिन वीरेंद्र बाबू एगो सच घटना सुनैलन। वीरेंद्र बाबू कहलन-दयानंद बाबू।हम जब सातवां क्लास में पढैत रहली त हमरा गांव के स्थान में के एगो बाबा जी,जे स्थान मे पुजारी रहे कहलन-वीरेन्दर।चला तोरा सीतामढ़ी घुमा देव छी। जानकी स्थान देखा देव छी।त हम कह ली चलू। साइकिल से चल देली।बाबा जी साइकिल हांके आ हम पिछा कैरियर पर बैठ गेली। केकरो कोई शक आ डर के कोनो बात न रहे।अइला कि बाबा जी स्थान में बहुत दिन से रहे आ मिलनसार रहे।
हं।त जानकी स्थान में जानकी जी के दर्शन कैली।फेर साइकिल से रीगा बाला रोड में चल अइली।उंहा बाबा जी साइकिल रोकलक। हमहु साइकिल पर से उतर गेली। हम साइकिल लेके खड़ा रही।बाबा जी रोड किनारे के चांपाकल पर गेलन।आ कुल्ला कैलन आ पानी से चनन के धो लेलन। पानी पीलन। हम कहली-बाबा चननो धोआ गेलो।बाबा जी कहलन-धुत्त बुरबक।
बाबा जी फेर साइकिल पर बैक खींच के रिंग बांध होइत एगो छोटका सन टोला पर अयलन।उहां छोटका छोटका फुस के घर रहे। वोही के दुआर पर कहीं लैइकी त कहीं औरत खड़ा रहे। कोनो कोनो लैइकी छोट छोट ड्रेस पहिन ले रहे। आधा छाती दिखाइत रहे। कोई कोई सिगरेट भी पियत रहे आ अश्लील इशारा भी करे। कहीं कहीं पक्का घर भी रहे। कोनो कोनो घर से हरमुनिया आ तबला के आवाज आबे। घुंघरू के भी आवाज आवे आ महिला के गीत गावे के आवाज आवे। हमरा उंहा केना दोन लागे।
बाबा जी कहलन-बीरेन्द्र इहां कुर्सी पर बैठल रहा।हम कनिका देर में अबै छी।हम कह ली ठीक हय। जल्दीये आउ।हमरा केना दन लगैय।।
बाबा जी एगो लैइकी संग फुस के घर में चल गेल।हम बाहर कुर्सी पर बैठल रही।हमरे तुरिया के एगो लैइकी कहलक-ऐ।तु कैला बैठल छा।चला हमरा जौरे भीतर।हम लजा गेली। वोही समय जे खड़ा रहे एगो औरत बोलल-अरे। माधुरी।इ अभी बच्चा हैय।इ खेल बेल न जानै हैय।देखै न छही। केना सिकुडल बैठल हैय।आ हमरा से पुछलक-ऐअ।तू इंहा केना आ गेला हैय बाबा जी के साथ।हम कहली हमरे गांव के स्थान में के बाबा जी हैय।त उ कहलक-बाबाजी त महीना में दू बार त अवश्ये अबैय। हमरा सभ के इहां त चोर डाकू,संत सिपाही सभ अबैय हैय।हम सभ सभके देहके सुख दैइ छियै।सभ अपन देहके भुख के मिटाबे अबैय।ओइमे बिआहल आ न बिआहल सभ हैय।हम सभ वेश्या छी।इ वेश्या टोला हैय।
बाबा जी आधा घंटा के बाद घर में से निकललन।
फेर चापाकल पर जाके मुंह हाथ धोयलन। हमरा आके कहलन आब घर चला। साइकिल से हम दूनू गोरे रिंग बांध होके फेर जानकी स्थान तर अइली।एगो जलपान के दूकान में दूनू गोरे कचौड़ी जलेबी खैली। साइकिल से घरे के लेल चलली।रस्ता में बाबा जी कहलन- हमरा इ मजबूरी हैय। मानसिक भूख के लेल त पूजा पाठ करै छी।परंच शारीरिक भूख के लेल टोला पर जाय के परे हैय।अइ टोला के रेडलाइट एरिया कहै छैय। हां बाबा।एगो औरत कहैत रहल हैय कि हम सभ वेश्या छी।इ वेश्या टोला हैय। बाबा जी कहलन-हं। वेश्या टोला के रेडलाइट एरिया कहै हैय।इ सभ केकरो न कहिया।
हां बाबा।हम केकरो से न कहब।आब उ बाबा जी अइ दुनिया में न हैय।
हमरो आचार्य रजनीश के लिखल संभोग से समाधि आ खजूराहो के मुर्ति के मर्म समझे में आवे लागल।दशम क्लास में पढायल शिक्षक रणजीत बाबू के याद आबे लागल कि कला और जीवन के एगो पाठ में खजुराहो के बारे में बतबैत कहले रहथिन कि केना एगो माय बाप के अपन बेटी आ वोकर प्रेमी से भेंट खजुराहो में नग्न आ मिथुन मूर्ति के देखैत भे गेल रहै।आपस में शर्मिंदा भे गेल रहै। आखिर सत्य त सत्य होय छैय। संभोग से समाधि के ओर अर्थात काम से राम के ओर। बाबा जी काम से राम के ओर यात्रा पर रहथि।
तभी वीरेंद्र बाबू कहलन-कथि सोचै छी।चलू साढ़े दस बज गेल। वार्निंग घंटी लगवा देय छी।
स्वरचित © सर्वाधिकार रचनाकाराधीन
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सीतामढ़ी।