काम बंद है _____ कहानी
“जब से आई बीमारी ,जिंदगी कईयों की हारी।
सामने हमारे ,आकर खड़ी हो गई यह बेरोजगारी।।
अपने आंगन में रमेश कुछ इसी प्रकार से गुनगुना रहा होता है तभी उसके मित्र सुरेश का उसका आना होता है।
क्या बात है,यह क्या गुनगुना रहे हो। अपने मित्र रमेश की ओर देखते हुए सुरेश बोला।
क्या बताऊं मित्र सुरेश _ पिछले एक डेढ़ वर्ष से यह
जो महामारी का संकट आया है तब से ही समझ नहीं आ रहा है यह क्या हो रहा है।
इसमें समझ की क्या बात है। समय है प्रकृति जो कर रही है वो तेरे ही नहीं सभी के साथ तो हो रहा है।
मानता हूं सुरेश, प्रकृति ने सब पर बहुत बुरा कहर ढाया है। पर मुझे लगता है की उसका सबसे ज्यादा प्रभाव मेरे जैसे लाखों लोगों पर पड़ा है।
मैं समझा नहीं रमेश।
इतने भी भोले मत बनो सुरेश ।
क्या तुम यह नहीं जानते कि पिछले डेढ़ वर्ष से सारे स्कूल बंद है।
हां यह बात तो है रमेश।
तो इसमें चिंता की क्या बात है।
क्या तुम नहीं जानते सुरेश स्कूल से मेरा कितना गहरा नाता है।
वह तो जानता हूं रमेश पर हम कर ही क्या सकते हैं।
अच्छा एक बात बताओ सुरेश _इस संकट ने बच्चों का कितना नुकसान किया है।
वह तो है रमेश।
चलो वह तो ठीक है पर हम जैसे पढ़ाने वाले शिक्षकों का कितना नुकसान हुआ है, क्या यह तुम नहीं जानते हैं।
जानता हूं मित्र, पर शासन भी तो कुछ नहीं कर पा रहा है।
हम भी शासन के साथ हैं, सुरेश पर जरा शासन की नजर हमारी और भी तो जाए।
मतलब !
मतलब यह है सुरेश कि पूरे देश में मुझ जैसे कितने होंगे जिनका काम बंद है।
क्या किसी ने इस पर विचार किया।
हां भाई रमेश यह तो बिल्कुल सही है।
सुरेश तुमसे एक प्रश्न करूं।
हां हां क्यों नहीं।
अच्छा यह बताओ जिस किसी को 25 वर्ष शिक्षा देते देते हो गया हो और उसका काम छूट जाए तो उस पर क्या गुजरेगी।
बात तो सही हे रमेश, वह लगभग टूट ही जाएगा।
मेरे साथ भी तो यही हो रहा है।
शिक्षा देने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा काम है नहीं।
कैसे इतने बड़े बड़े दिन बिना काम के बिताऊं।
चिंता मत करो रमेश धीरे-धीरे लग रहा है कि विद्यालय अब खुल जाएंगे और तुम्हारी परेशानी हल हो जाएगी।
भगवान करे ऐसा ही हो।
यह सिर्फ रमेश की है नहीं ऐसे हजारों लाखों शिक्षकों की कहानी है जिन्होंने प्रकृति की मार के आगे अपना काम गवा दिया है।
आशा और विश्वास पर ही जीवन टीका है , रमेश को भी इसी बात का इंतजार है, कि कब यह परिस्थिति बदले कब वह अपने काम पर लौटे।
शिक्षक ही नहीं लाखों-करोड़ों विद्यार्थी भी इस संकट से जूझ रहे हैं। उनका मानसिक विकास लगभग रुक सा गया है।
राजेश व्यास अनुनय