काम-धाम में मगन पाया
प्रातः उठा घूमने गया
सूर्य की लाल किरनों संग ,
घर लौट आया
पकृति की सुगंधों से,
तन-मन में खुशहाली छाया
हँस-हँस कर मित्रों संग,
कई अनकहीं बातें बनाया
स्वच्छ रहने की खातिर,
स्नान कर कुछ खाया
कोई मस्ती भरी बातों से
परिवार का मन बहलाया
पेट पालने की खातिर
काम-धाम में मगन पाया
जीवन जीने का तरीका
बहुत अच्छे से निभाया
ज्यादा पाने की ललक नहीं
जितना है उतने मे खुश रहने का धोंग रचाया
जिंदगी की कठिन राहों पर
चाहत को अपनी बेच आया
दिन भर की काम-धाम को कर,
शाम को घर लौट आया
विवशता सारी छुपा कर
मुखडे़ पर मुस्कान लिए
लोगो को खुब हँसाया
फिर वहीं खाना खाने के बाद
दिन भर की थकान लिए,
चेन की नींद सो पाया.।
स्वरचित
‘शेखर सागर’