कानूनन बेटी से इतना प्यार
संजना, आज भी तुमने टिफिन में सलाद नहीं रखा। हर बार भूल जाती हो। और मेरी ब्लू शर्ट भी प्रेस नहीं की तुमने अब तक । कल सुबह मुझे मीटिंग में पहननी है” संजय ने खाना खाते हुए कहा।
“अरे, वो आज सुबह बहुत काम था, वंशु का भी प्रोजेक्ट बनाना था और राशि दीदी आने वाली थी इसलिए उनकी पसंद का खाना बनाने में व्यस्त थी। कल से डाल दूंगी”रूचि ने गर्म रोटी देते हुए कहा।
“क्या कल से करूंगी, बहुत भूलकक्ड़ हो रही हो …”संजय आगे कुछ बोलता इतने में ही उनकी मां बोली पड़ी।
“बेटा, घर की औरतों को 100 काम होते हैं, एक दिन कुछ नहीं हुआ तो क्या। कुछ काम खुद भी करने चाहिए” सुरेखा जी ने टोकते हुए कहा।
राशि अपनी मां को हैरानी से देख रही थी। आज मां ने भाभी के लिए सुर कैसे बदल लिए। भाभी के पक्ष में बोलते हुए शायद उसने पहली बार सुना था।
“रिलेक्स भैया, जल्दी से ख़ाना खत्म करों, फिर आराम से खेलेंगे, मजे करेंगे। भाभी आज तो आपको भी हमारे साथ खेलना पड़ेगा। बस दो दिन की छुट्टी मिली है मुझे ट्रेनिंग से फिर तो वापस हास्टल ही जाना है” राशि ने चहकते हुए कहा।
“उसे कपड़े भी प्रेस करने है, मुझे कल चाहिए होंगे” संजय टोकते हुए बोला।
“कपड़े तो खाना खाकर तुम भी प्रेस कर सकते हो बेटा। बहू भी तब तक किचन का काम निपटाएगी। उसे भी हमारे साथ बैठने का मौका मिलना चाहिए”सुरेखा जी ने कहा।
राशि आज मां के इस बदलाव को देखकर हैरान थी। आखिर 1 साल में ऐसा क्या हो गया, जो उसकी मां में इतना बदलाव आ गया।
जो मां अपने बेटे को पानी का एक गिलास भी खुद से लेने को नहीं कहती थी,आज वो ऐसी बात कर रही है। पहले तों हमेशा भाभी के काम में नुक्स निकालती थी, रोज किसी न किसी बात को लेकर कहासुनी करती थी, वो आज इतनी सरल कैसे हो गई।
“बहु तुम भी आ जाओ। अब बाकि का काम कल सुबह सुशीला (कामवाली) कर देगी। तुम क्यों परेशान हो रही हो। तुम आओगी तभी खेल शुरू करेंगे”सुरेखा जी ने डाइनिंग रूम से पुकारते हुए कहा।
“सच-सच बताओ मम्मी आखिर माजरा क्या है? क्या चल रहा है मेरे पीठ के पीछे, आखिर आपने ऐसा क्या किया जो आप कानूनन बेटी से इतना प्यार कर रही हो। कहीं कोई साजिश तो नहीं। कुछ तो गड़बड़ है दया ….” राशि हाथों से इशारे करके C.I.D की तरह एक्टिंग करते हुए बोली।
राशि और वंश जोर-जोर से खिलखिलाने लगे।
“ऐसे क्या कर रही हो राशि बेटा ….”।
“अरे, सारी मम्मी। ऐसे ही मजाक में पूछ रही हूं।
पर मम्मी बात भले ही मैंने मजाक में की हो, पर कारण तो में जरूर पूछना चाहती हूं। अब भाभी के प्रति इतनी सरल कैसे हो गई। क्या किया आखिर मेरी सुरेखू रानी ने ने ?”राशि ने मां के गाल सहलाते हुए पूछा।
“ऐसा कुछ नहीं है बेटा, जब तुम साल भर पहले घर से गई थी तो मैं बहुत उदास हो गई थी। तेरे बिना बहुत सूना-सूना लगता था। तेरे पापा के जाने के बाद एक तू ही थी जिससे मैं हर बात शेयर करती थी, मन की हर बात कहती थी। तू पास में थी तो मेरा दिल भरा हुआ था पर तेरे जाने के बाद मैं बहुत अकेला महसूस करती थी।
एक दिन अचानक मेरा बी.पी.बहुत लो हो गया था, और मैं चक्कर खाकर गिर गई थी, तब संजना बहू ने मुझे संभाला। डाक्टर को बुलाकर मेरा चेकअप कराया और उनसे सलाह-मशवरा करके मेरे अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक दिनचर्या सेट की।
वो मेरा हर तरह से बेटी की तरह ख्याल रखती। जो चीजें मुझे खाने में पसंद नहीं थी पर फिर भी स्वास्थ्य की दृष्टि से वो मुझे मां की तरह डांट लगाकर समझाती और खिलाती।
संजय तो फिर भी फोन पर दिन में या रात में हाल-चाल पूछता था पर संजना बहू 24 घंटे मेरे लिए तत्पर रहती थी।
सच बताऊं तो संजना ने मेरे उदास मन का हाल समझ लिया। वो रोज किसी न किसी बहाने से मुझे पार्क में टहलने ले जाती। इधर-उधर की बातें करके मुझे हंसाती। पार्क में हमउम्र की सहेलियों से मिलवाती। धीरे-धीरे मैंने भी उसे किसी भी बात के लिए बेवजह रोक-टोक करना बंद कर दिया था।
संजना बहू के इस व्यवहार से मुझे विश्वास हो गया कि अब मुझे घर की बागडोर संभालने की जरूरत नहीं। संजना इतनी समझदार है कि वह घर-परिवार अच्छे से संभाल सकती है।
उस दौरान मुझे एहसास हुआ कि वास्तव में बहू ही है जो सास के हर सुख-दुख में सच्ची “सहभागी”होती है। बेटा काम पर चला जाता है और बेटी ससुराल, पर असल में सेवा और समर्पण तो बहुएं ही करती है। अंग्रेजी में तेरे भले ही कानूनन बेटी (डाटर-इन-ला) कहते हैं, पर हकीकत में अगर सास -बहू दोनों एक-दूसरे के साथ प्यार व सामंजस्य से रहे तो वह वास्तव में बेटी ही बन जाती है।
सच है, कोई भी रिश्ते को अपनाने में समय लगता है, पर जब दोनों तरफ से आपसी प्यार व अपनत्व का प्रवाह होता है, तो हर रिश्ते में प्रेम का अंकुरण हो ही जाता है।
अब मुझे जितना बेटा प्यारा है, उतनी प्यारी मेरी बहू संजना भी लगती है” सुरेखा जी ने भरे स्वर में कहा।
“और मैं……मैं आपको प्यारी नहीं हूं। मैं तो थोड़े समय बाद वैसे ही पराई होने वाली हूं “राशि ने मजाक में मुंह बनाते हुए कहा।
“हट..पगली, तू तो मेरे जिगर का टुकड़ा है “सुरेखा जी ने पुचकारते हुए कहा।
“मजाक कर रही थी मम्मी, पर मुझे बहुत ख़ुशी है कि आपने संजना भाभी के लिए इतना सोचा। मैं भी आपको भाभी के आने के बाद अक्सर समझाती थी कि मां थोड़ा समय दो भाभी को।
वो धीरे-धीरे सब समझ जाएगी, पर आप मेरी बातों को अनदेखा करती थी।
पर मुझे खुशी है इस बात की देर से ही सही आप दोनों के बीच में अब मां-बेटी सा प्यार है। वो भले ही पराए घर से आई है पर आप उन्हें आजीवन अपनी सगी बेटी की तरह रखना। जैसे प्यार आप अपनी बेटी पर लुटाती है उससे भी ज्यादा आप भाभी पर लुटाना, क्योंकि जीवन के अंत तक वहीं हमेशा आपके साथ रहेगी” राशि ने सहजता से कहा।