काटो ना मुझे
काटो न मुझे
कहते सब पेड़ ,
पछताओगे।
शुद्ध हवा मैं
देता धरती को,
कहाँ पाओगे।
बाढ़ सुनामी
भयंकर तबाही,
आती रहेगी।
प्रकृति जब
डालेगी मुश्किल में
काया डरेगी।
तुम मिलाये
विष जलाशय में,
क्या पिओगे?
धुंध औ धुंआ
समां में पसरी है,
कैसे जिओगे?
तप रहा है
हिमालय हृदय से,
गल रहा।
अपना दर्द
पिघलकर कहे,
सुनामी आवे।
जल वायु भू
किया सब दूषित,
कहाँ रहोगे?
सांसे अटकी
जीने की अभिलाषा,
कम हो रही।
करना होगा
सबको खयाल यूँ,
बचे जीवन।
देखभाल हो
जरुरी, हर एक,
लगाएँ वृक्ष।
केवल पेड़
नितांत जरूरी हो,
तब कटे।
कटे एकम
लगे तरु दशम,
ऐसी मुहिम।
धरा हमारी
हरियाली से युक्त,
होगी सुंदर।
स्वस्थ होंगे
जन तन निरोग,
सुंदर काया।