काजल
काजल (मदिरा सवैया)
आँख सुशोभित काजल से चमके मुखड़ा अति भव्य लगे।
विद्युत सी दमके पुतली प्रिय दिव्य तरंग बहार जगे।
मोहक रूप धरे युवती यह काजल सर्व लुभावत है।।
बालक को नजरें न लगें य़ह रोग समस्त भग़ावत है।
दूषित वात हरे नित काजल प्रेत निवास जलावत है।
दीपक से निकले जब काजल देव समग्र बुलावत है।
काजल गो घृत का अति उत्तम नेत्र सदा चमकावत है।
स्वस्थ बनावत प्रेम दिखावत कोयल बोल सुनावत है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।