कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
जैसे कि दवा मैं पिऊं और मर्ज़ तेरा हो
रस्ता तकूं,बातें करूं,नखरे भी उठाऊं
बर्बाद वक्त मैं करूं और हर्ज़ तेरा हो
अपनी अना पे जीने का मतलब हीं खो गया
जीती हूँ जैसे मुझपे बहुत कर्ज़ तेरा हो
मैंने हिसाब रखा है अपने गुनाह का
मैं चाहती नहीं कि कोई खर्च तेरा हो
हर वक्त ये उम्मीद क्यूं रहती है मुझी से
बातें तो मैं करूंगी मगर तर्ज़ तेरा हो
महफ़िल में कोई ज़िक्र सितम का करे कभी
मैं चाहती हूँ चेहरा बहुत ज़र्द तेरा हो