काकी से काका कहे, करके थोड़ा रोष ।
काकी से काका कहे, करके थोड़ा रोष ।
व्यर्थ खर्च को रोकिए , बीता संचित कोष।
बीता संचित कोष , व्यर्थ के रोको खर्चे ।
देखो मेरी जेब , भरे सब व्यय के पर्चे ।
मानो भी अब जान, बचा ना कुछ भी बाकी ।
छोड़ो भी तकरार , मान भी जाओ काकी ।
सुशील सरना / 28-4-24